शाकंभरी देवी शक्तिपीठ, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
मानवता की रक्षा व देवताओ के अस्तित्व को बचाने के लिए ईश्वर की विनम्र प्रार्थना पर मां दुर्गा ने समय समय पर कई युद्धों को लड़ा हैं। माँ दुर्गा को अपराजिता के नाम से भी जाना जाता हैं। अपराजिता अर्थात जो कभी भी पराजित न हुई हो। सनातन धर्म में माँ दुर्गा शक्ति की मूल स्त्रोत के रूप में जानी जाती हैं अर्थात इस ब्रह्माण्ड की निर्मात्री वही आदि शक्ति वही हैं। उन्ही मूल शक्ति से अन्य सभी छोटी बड़ी देवियां प्रकट हुई हैं। इन्ही देवियों में एक देवी शाकम्भरी देवी भी हैं। शाकम्भरी देवी शताक्षी देवी का ही दूसरा नाम हैं।
माँ दुर्गा के इस सौम्य स्वरुप में प्रसाद में बताशे नहीं बल्कि साग सब्जी चढ़ाये जाते हैं
शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित हैं। माँ दुर्गा का यह अवतार धरती पर साग सब्जी व खाद्य संकट दूर करने के लिए हुआ था। यही कारण हैं कि इस देवी का नाम शाकम्भरी हैं। देवी शाकम्भरी की पूजा में सब्जियां और फल चढ़ाए जाते हैं। इन्हें सब्जियों और फलों की देवी कही जाती है। देवी शाकम्भरी की शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में हैं !
देवी शाकंभरी की शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के निकट शिवालिक की पहाड़ी पर है
उत्तरप्रदेश के मेरठ के निकट सहारनपुर से ४० किलोमीटर दूर माता शाकम्भरी देवी की शक्तिपीठ स्थित है। इस शक्तिपीठ में माता शाकम्भरी देवी के साथ तीन अन्य देवियां भीमा देवी, भ्रामरी देवी और शताक्षी देवी भी विराजमान है। माता शाकम्भरी के दायीं ओर भीमा देवी एवं भ्रामरी देवी तथा बायीं ओर शताक्षी देवी प्रतिष्ठित है। माता की यह शक्तिपीठ बहती नदी, ऊँचे पहाड़ो और जंगलो के बीच शिवालिक पहाड़ी पर स्थित है। शाकम्भरी देवी की आराधना करने से खाद्य पदार्थो और अन्न की कमी नहीं होती है। माता की आराधना करने से धन धान्य और सम्पन्नता आती है।
एक बार धरती और देवलोक पर दुर्गमासुर नामक दैत्य ने आतंक मचा दिया था
एक बार की बात जब दुर्गमासुर नामक दैत्य धरती और देवलोक पर आतंक मचा दिया था। उसी समय धरती पर अकाल भी पड़ गया था। बारिश नहीं होने के कारण पेड़ पौधे सूख गए थे और जीव जंतु मारे जा रहे थे। नदियों में पानी नहीं होने के कारण वे भी सूख गई थी। इस तरह दुर्गमासुर दैत्य का आतंक और अकाल के कारण हर ओर त्राहिमाम ही त्राहिमाम मचा हुआ था। इस भयंकर समय से तंग आकर देवताओ ने मिलकर देवी दुर्गा की आराधना की और उनसे दुर्गमासुर के अंत की कामना की। देवताओ की आराधना से महादेवी दुर्गा प्रसन्न होकर उनेक सामने प्रकट हुई और उन सबको आश्वासन दिया कि वो उस असुर का अब अंत करेगी।
देवताओ को आश्वासन देकर देवी ने दुर्गमासुर को युद्ध के लिए ललकारा
देवताओ को आश्वासन देकर देवी ने दुर्गमासुर को युद्ध के लिए ललकारा। इसके बाद देवी ने पृथ्वी और देवलोक के बाहर एक सुरक्षा घेरा बनाया ताकि युद्ध के समय वह दैत्य देवताओ और पृथ्वी पर कोई हानि नहीं पहुंचा सकें। देवी उस सुरक्षा घेरा से बाहर निकल गई। उसके बाद देवी ने दुर्गमासुर को युद्ध के लिए ललकारा। बाद में देवी दुर्गा के साथ दुर्गमासुर दैत्य का बड़ा भयानक युद्ध हुआ और अंत में वह असुर मारा गया। उसी समय देवी दुर्गा से देवी शाकम्भरी प्रकट हुई जिसकी शक्ति से पृथ्वी पर फिर से हरियाली आयी। धरती पर फिर से साग सब्जी, फल फूल, पेड़ पौधे उगने लगे और धरती पर जीवन फिर से बसने लगा।
माँ शाकम्भरी कई परिवारों की कुलदेवी भी हैं
माँ शाकम्भरी कई परिवारों की कुलदेवी भी हैं। देवी शाकम्भरी राजपूत, कश्यप, ब्राह्मण व वैश्यों सहित अनेकों जातियों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। प्रायः हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, पंजाब आदि क्षेत्रो में रहने वाले अनेक परिवारों की कुलदेवी देवी शाकम्भरी है।
देवी दुर्गा ने भगवान विष्णु के आग्रह पर धारण किया था यह रूप
मंदिर के पूर्व में देवी का सेनापति भूरादेव का भी मंदिर हैं। भूरा देव इस शक्तिपीठ का भैरव हैं। क्योकि देवी की शक्तिपीठ में एक भैरव भी होता हैं। भूरादेव का मंदिर माता के दरवार से लगभग एक किलोमीटर दूर हैं। देवी शाकम्भरी का यह मंदिर अति प्राचीन हैं। देवी शाकम्भरी भगवान् विष्णु के आग्रह पर शिवालिक की पहाड़ी पर प्रकट हुई थी। देवी शाकम्भरी के स्वरुप का वर्णन दुर्गा सप्तशती में मिलता हैं। देवी शताक्षी देवी शाकम्भरी के नाम से जानी जाती हैं। देवी शताक्षी पालन का प्रतिक हैं और देवी दुर्गा का सौम्य स्वरुप के रूप में विख्यात हैं। देवी शाकम्भरी महामाया का ही एक रूप हैं।
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लेख:राजीव सिन्हा
Jai ho sakambhari maiya ki🙏🙏🙏
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