Badi Durga Munger
आश्विन मास (Ashwin Maas) में मनायी जाने वाली दुर्गा पूजा जिसको नवरात्री के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार है। माँ दुर्गा शक्ति की देवी है। सनातन धर्म (Sanatan Dharm) में आश्विन मास (Ashwin Mahina) में मनायी जाने वाली नवरात्री का बहुत महत्व है। आश्विन महीने में माँ दुर्गा की प्रतिमा अनेको स्थानों पर एवं अनेको शहरो में स्थापित की जाती है। मगर मुंगेर में आश्विन महीने में स्थापित होने वाली बड़ी दुर्गा का महत्व ही निराला है। वैसे तो आश्विन महीने में मुंगेर शहर (Munger Town) में माँ दुर्गा व माँ काली की अनेको प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। मगर इन सब में बड़ी दुर्गा, शादीपुर (Badi Durga, Sadipur, Munger) का बिशेष महत्व है। मुंगेर शहर (Munger City) भर में बनने वाली सभी दुर्गा प्रतिमाओं का नेतृत्व बड़ी दुर्गा के द्वारा किया जाता है।
Munger ki Badi Durga - Badi Durga Maa Munger (Munger Badi Burga)
श्री श्री १०८ बड़ी दुर्गा महारानी, मुंगेर शहर के शादीपुर में स्थापित है। यहाँ माता का स्थायी मंदिर है, जो वर्ष भर भक्तो के लिए खुला होता है। आश्विन महीने में माँ दुर्गा की प्रतिमा इसी स्थान पर बनायीं जाती है। कलाकार इसी स्थान पर आकर उनकी प्रतिमा बनाते है। मुंगेर में स्थापित होने वाली माता की सभी प्रतिमाओं को कलाकार माता के स्थान पर ही जाकर बनाते है। प्रतिमा बनाने का कार्य महीनो पहले आरम्भ हो जाता है और प्रतिमा बन जाने पर इसी स्थान पर पहली पूजा के दिन कलश स्थापित करके पूजा आरम्भ कर दी जाती है।
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श्री श्री 108 बड़ी दुर्गा, सादीपुर, मुंगेर - Badi Durga, Munger :
माता के दर्शन व पूजन के लिए स्त्रियों, पुरुषो व बच्चो का आना पहली पूजा से ही आरम्भ हो जाता है। लेकिन छठी पूजा से श्रद्धालुओं की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है और सप्तमी, अष्टमी, नौवीं, दशमी के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ चरम पर होती है।
दशमी के संध्या के समय माता की इस विशाल प्रतिमा को अपने स्थान से हटा कर मुख्य मार्ग के चौराहे पर रखी जाती है। भक्त यहाँ भी माँ के दर्शन करके उन्हें प्रसाद या अन्य कोई चढ़ावा चढ़ाते है। माँ की यह प्रतिमा भक्तो के दर्शन हेतु रात भर रखी जाती है।
Sanatan Dharm (Hindu Dharm):- Durga Puja (Badi Durga Maa)
अगले दिन माँ की इस विशाल प्रतिमा को अनेको भक्त कंधे पर उठाते हुए सोझी घाट की ओर चल देते है। माँ की यह विशाल प्रतिमा किसी वाहन में नहीं बल्कि सैकड़ो लोग मिलकर अपने कंधे पर डोली की तरह उठाते हुए चलते है। चूँकि प्राचीन काल में बेटी की विदाई डोली में की जाती थी और उस डोली को कुछ लोग कंधे पर उठाते हुए चलते थे। यही परंपरा आज भी बड़ी दुर्गा, मुंगेर के साथ जारी है। यह परंपरा बड़ी दुर्गा के अलावे छोटी दुर्गा एवं बड़ी काली के साथ भी है। बड़ी दुर्गा के पीछे छोटी दुर्गा और उनके पीछे बड़ी काली होती है। शहर में बनने वाली माँ की शेष अन्य प्रतिमाएं पीछे पीछे होती है। इस प्रकार माँ की यह अंतिम शोभायमान यात्रा शुरू हो जाती है।
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Badi Durga, Munger:(Ashwin Ki Navratri)
इस यात्रा में भी भक्तो की भारी भीड़ होती है। चूँकि माँ की यह प्रतिमा कई स्थानों से गुजरती है और मार्ग में कई स्थानों में उन्हें नीचे रखी जाती है। इसलिए भक्त यहाँ भी माँ को प्रसाद, फूल-माला या अन्य कोई चढ़ावा चढ़ाते रहते है।
माँ की यह यात्रा गंगा नदी के तट पर बने सोझी घाट पर जाकर समाप्त हो जाती है। यहाँ भीगी आँखों से भक्त अपनी जगतजननी माँ की प्रतिमा की विदाई देते है। आत्मा और परमात्मा के वियोग का ऐसा ह्रदय - विदारक दृश्य बहुत कम देखने को मिलता है। इसी सोझी घाट पर माँ दुर्गा की इस दिव्य विशाल प्रतिमा को गंगा नदी के तेज धारा में विसर्जित कर दी जाती है।
माँ जगतजननी दुर्गा सभी के ह्रदय की बातों को जानती है। आवश्यकता है केवल, उनके प्रति अटूट श्रद्धा एवं विश्वास बनाये रखने की। कहते है - बड़ी दुर्गा महारानी, मुंगेर के सामने अटूट श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति से मांगी गयी हर सम्भव मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है। माँ जगदम्बा अपने सन्तानो को कभी भी निराश नहीं करती है। तभी तो नवरात्री में यहाँ देश के दूर दूर के क्षेत्रो से लोग आते है और बड़ी दुर्गा, मुंगेर का दर्शन करके अपना जन्म सफल करते है।
लेखन :
(राजीव सिन्हा दिल्ली के जाने माने लेखक है)