सनातन धर्म कितना पुराना है?
Sanatan Dharma Age-सनातन धर्म/हिन्दू धर्म कितना पुराना:-
अगर किसी के मन में यह प्रश्न उभर रहा है कि धरती का सबसे प्राचीन धर्म(सबसे पुराना धर्म) कौन सा है। तो उसका एक ही उत्तर है और वो यह है-- सनातन धर्म (Sanatan Dharm) वास्तव में, सनातन धर्म अर्थात हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन और प्रथम धर्म है। अब तक के मिले सभी लिखित व अलिखित साक्ष्य इस बात को साबित भी करता है। विभिन्न देशो व स्थानों पर धरती के अंदर से समय समय पर खोदाई में निकले हिन्दू देवी देवताओ की प्रतिमाओं व अन्य साक्ष्यों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि सनातन धर्म ही विश्व का प्रथम धर्म (Dharti Ka Pahla Dharm) है। विश्व का कोई भी अन्य धर्म सनातन धर्म जितना पुराना नहीं है। विश्व में आज जितने भी धर्म है, वे या तो सनातन धर्म से अलग होकर अपने अस्तित्व में आये है अथवा उसके बहुत बाद स्वतंत्र रूप से प्रचलित हुए है। वास्तव में, सनातन धर्म इस धरती का सबसे प्राचीन और पहला धर्म (Dharti Ka Sabse Prachin, Aur Pahla Dharma) है।
हिन्दू धर्म कब से प्रचलित है?
सनातन धर्म का आधार वेद है-वेद इस धरती पर का सबसे प्राचीन और श्रेष्ट धार्मिक ग्रन्थ है:
पुराणों में वर्णित यह भविष्यवाणी कि कलयुग (Kalyug) में अनेक धर्म होंगे और उनके अनेक मानने वाले भी होंगे, ये आज सच साबित हो चुकी है। सनातन धर्म वेद पर आधारित धर्म है (Sanatan Dharm Ved Par Adharit Dharm Hai) और इन वेदो में भी ऋंगवेद की प्रमुखता है। इस तरह सनातन धर्म मूलतः ऋंगवेद पर आधारित धर्म है। ऋंगवेद को संसार की सबसे प्राचीन और प्रथम पुस्तक माना गया है। माना यह भी गया कि ऋंगवेद को ही आधार बनाकर कालांतर में यदुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद की रचना हुई थी। इस प्रकार यह कहना गलत नहीं होगा कि ऋंगवेद का ही विस्तारित और विभाजित रूप अन्य तीनो वेद है। वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित श्रोत है।
हिन्दू धर्म की महानता - सबसे अच्छा धर्म कौन सा है (सबसे महान धर्म कौन सा है):
हिन्दू धर्म का मूल नाम सनातन धर्म है। (Hindu Dharm Ka Vastavik Naam Sanatan Dharm Hai) प्राचीन काल में हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहा जाता था। वास्तव में, हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। भारतबर्ष में मुस्लिम आक्रांताओ के आक्रमण के पहले सनातन शब्द ही अस्तित्व में था। लेकिन बर्बर, हिंसक व कट्टर इस्लामिक आक्रांताओ के आक्रमण के बाद धीरे धीरे सनातन शब्द का लोप होता चला गया और उसके स्थान पर हिन्दू शब्द प्रचलन में आ गया।
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति-सनातन शब्द के स्थान पर हिन्दू शब्द कैसे प्रचलित हो गया:
माना जाता है कि हिन्दू शब्द सिंधु शब्द का अप्रभंश है। भारत में सिंधु एक नदी का नाम भी था। साथ ही एक बड़े से राज्य का नाम भी था। सिंधु या सिंध राज्य के निवासियों को सिंधी कहा जाता था। कुछ जानकारों का मानना है कि धीरे धीरे सिंधु शब्द ही हिन्दू में परिवर्तित हो गए और हिन्दुओ के धर्म को हिन्दू धर्म कहा जाने लगा। कुछ जानकारों का मत कि हिमालय से हिन्दू शब्द की उत्पत्ति हुई है क्योकि हिमालय पर्वत के ही एक भाग को हिन्दुकुश पर्वत कहा जाता है और वर्तमान में यह पर्वतमाला पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान तक में फैला हुआ है।
'हिन्दू धर्म' को सनातन धर्म, आर्य धर्म के अलावे वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता था:
हिन्दू धर्म आर्यो का धर्म था। इस कारण प्राचीन काल में इसे आर्य धर्म भी कहा जाता था। आर्यो के समय हिन्दू धर्म को वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता था। ऐसा इसलिए था क्योकि हिन्दू धर्म में वेद कि प्रधानता थी। इस प्रकार प्राचीन काल में हिन्दू धर्म कई नामो से जाना जाता था जैसे-सनातन धर्म, वैदिक धर्म व आर्य धर्म आदि।
आर्य कौन थे: (Arya Kaun The) भारतबर्ष में आर्य किसको पुकारा जाता था:
जहाँ तक बात आर्यो की पहचान की जाएँ, तो आर्य किसी जाति का नाम नहीं था। बल्कि इसका अर्थ श्रेष्ठ समाज था। यानि आर्यो का समाज श्रेष्ठ लोगो का समाज माना था और आर्यो का धर्म श्रेष्ठ लोगो का धर्म कहलाता था। प्राचीन इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि उस समय भारत को आर्यावर्त कहा जाता था, जिसका अर्थ श्रेष्ठ लोगो के निवास करने वाले पवित्र स्थल हुआ करता था। प्राचीन भारतबर्ष के कालखंड में जाति व्यवस्था नहीं थी। इसी कारण यहाँ रहने वाले सभी सनातनी एक थे और सभी का एक ही धर्म था और वो था सनातन धर्म। जाति व्यवस्था रूपी कुरुति बाद के समय में धीरे धीरे अस्तित्व में आने लगी थी। पर आरम्भ में सनातन धर्म के मानने वालो में जाति जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
Sanatan Dharma Origin-प्राचीन काल में सनातन धर्म के मानने वाले कहाँ तक फैले थे:-
ऐसा माना गया है कि आर्य आज से 6500 वर्ष पूर्व मध्य एशिया से लेकर हिमालय तक फैले हुए थे। यानि आज जो मुस्लिम देश कहलाते है उनमे लगभग कभी आर्यो की पवित्र भूमि हुआ करती थी। धीरे धीरे समय बदलता चला गया और फिर हिन्दू धर्म से ही अलग होकर नए नए धर्म बनने लग गए। बाद के समय में हिन्दुओ में से कुछ लोगो ने जैन धर्म की नींव रख दी। इनमे से कुछ वे लोग थे, जो जंगलो में जाकर तपस्या कर रहे थे। हालाँकि जंगल में जाकर तपस्या करने वाले सभी लोगो ने ऐसा नहीं किया और उनकी संख्या ज्यादा भी नहीं थी। लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रो में उन लोगो ने मिलकर अपने धर्म को अस्तित्व में लाने में सफलता प्राप्त कर ली। बाद में आर्यो का ही एक समूह ने पारसी धर्म की भी नींव रख दी थी। पारसी आंदोलन से पहले वर्तमान ईरान, जो उस समय फारस के नाम से जाना जाता था, वहां सनातन धर्म ही हुआ करता था। इसके कई साक्ष्य मिले है।
वास्तव में, आज का कट्टर इस्लामिक देश कहे जाने वाले ईरान कभी सनातन धर्म के मानने वालो की भूमि हुआ करती थी। ईरान में आकर बसने वाले लोग आर्य ही थे, जो आज से लगभग 2000 ईसापूर्व उत्तर एवं पूर्व (भारत की मुख्य भूमि) से आकर यहाँ बस गए थे। उससे पहले यहाँ कुछ मूल निवासी रहा करते थे, जो यायावर (खानाबदोश) थे। वे बस्तियों में एक स्थान पर घर बनाकर नहीं रहा करते थे। बाद में, भारत से गएँ आर्यो के कई समूहों ने वहां बस्तियों को विकसित किया। कालांतर में वहां के मूल निवासी भी आर्यो के साथ मिल गए, जिससे एक मिश्रित संस्कृति की नींव पड़ गई और उसी काल में उन्होंने पारसी धर्म की भी नींव रख दी। उस समय का ईरान पूर्वी यूरोप से लेकर मध्य एशिया तक फैला एक विशाल क्षेत्र हुआ करता था। हालांकि प्राचीन ईरान के बारें में अब भी बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योकि लुटेरा सिकंदर से लेकर अरब के आक्रमणकारियों ने प्राचीन ईरान (फारस) की धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान को नष्ट कर दिया है। वर्तमान जानकारी अन्य देशो व धर्मो के धर्मग्रंथो, ईरान के पहाड़ो में उकेरे गएँ शिलालेखो एवं खोदाई से प्राप्त हुए है। लेकिन जितने भी साक्ष्य उपलब्ध है, वे सभी इन्ही बातो को साबित करते है कि प्राचीन ईरान में आर्यो के आगमन के बाद सनातन धर्म ही अस्तित्व में था।
इसी प्रकार सनातन धर्म से कई धर्म निकलते चले गए। दो हजार वर्ष पूर्व यहूदी धर्म और ईशाई धर्म की नींव पड़ गई।
इसी तरह मात्र चौदह सौ वर्ष पूर्व मुस्लिम धर्म के मानने वाले का आगमन हो गया और फिर ये लोग अपनी क्रूरता, कट्टरता, लूटपाट, तलवार के बल पर दूसरे धर्म के लोगो का धर्मांतरण, दूसरे धर्म की स्त्रियों का बलात्कार, अपहरण व हत्या के बल पर विश्व में तेजी से फैलते चले गए। वे लूटपाट, बलात्कार, हत्या, जेहाद करते हुए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक भटकते रहते थे। वे लोग समूहों में रहते थे। वे जहाँ भी होते थे, वही उत्पात मचाते थे। आतंक फैलाते थे। कभी कभी वे लोग आपस में ही भीड़ जाया करते थे। जो आज भी इनके स्वभाव में स्पष्ट देखा जा सकता है। इसी प्रकार लगभग 500 ईशा पूर्व हिन्दू धर्म से अलग होकर बौद्ध धर्म अस्तित्व में आ गया। बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ नाम का एक व्यक्ति था, जो अपने आपको गौतम बुद्ध के नाम प्रचलित होकर अपनी सोच व मत का प्रचार प्रसार करना चाहता था। गौतम बुद्ध 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे। बौद्ध धर्म के लोगो ने भी अपने कालखंड में सनातन धर्म को जबरदस्त क्षति पहुंचाया था। माना जाता है बौद्ध धर्म ने सनातन धर्म का उतना ही क्षति पहुंचाया था जितना इस्लामिक कट्टर, जेहादी, लुटेरे, बलात्कारी मुसलमान ने क्षति पहुंचाया। दोनों में अंतर बस इतना ही था कि एक ने अहिंसा का तरीका अपनाया जबकि दूसरे ने कट्टरता, क्रूरता, लूटपाट, जेहाद किया। साथ ही दोनों का कालखंड भी अलग अलग था। इसी प्रकार बाद में हिन्दुओ का ही एक समूह अपने आपको सरदार कहलवाने लगा और धीरे धीरे उन सरदारो ने एक अलग धर्म की स्थापना कर डाली जो पजाबी धर्म कहलाया। हालांकि आरम्भ में इस समूह का निर्माण सनातन धर्म की क्षति पहुंचाने हेतु नहीं हुआ था मगर बाद के कालखंड में इन में से कई लोग अपने आपको अलग धर्म का कहलवाने में रूचि लेने लगे और फिर धीरे धीरे यह समूह पूरी तरह से अपने आपको सनातन धर्म की परंपरा से दुरी बना ली। माना जाता है यह समय मूल रूप से अग्रेजो के आगमन के बाद हुआ और स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की डिवाइड एन्ड रूल की नीति के कारण यह समूह पूरी तरह से सनातन धर्म से अलग होकर एक अलग ही धर्म बना लिया और उसके मानने पंजाबी कहलाने लगे।
हिन्दू धर्म का आरंभ काल:
अब जहाँ तक बात रही हिन्दू धर्म के आरंभ काल की। तो हिन्दू धर्म के आरम्भ का सही कालक्रम का आकलन अब तक नहीं हो पाया है। जानकारों के अलग अलग मत है। मगर विभिन्न धार्मिक ग्रंथो की मान्यता एवं विश्लेषण इसके अति प्राचीन होने की पुष्टि करता है। ऐसा माना जाता है कि लाखो वर्ष पूर्व ही हिन्दू यानि सनातन धर्म अस्तित्व में आ गया था। अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही सनातन धर्म अस्तित्व में आ गया था। फिर समय आगे बढ़ता रहा। अनेक सभ्यताओं का आरम्भ, अनेक युगो का आरम्भ व अंत होता गया और सनातन धर्म चलता रहा। समय समय पर सनातन धर्म को हानि पहुंचने वाली अनेक ताकते आती रही और सनातन धर्म उसका सामना करता हुआ आगे बढ़ता रहा।
आर्यो ने अपने धर्म यानि पूर्वजो की लीलाओ को गाकर व रटकर एवं दूसरे से सुनते और सुनाते हुए जीवित रखा:
दरअसल आर्यो ने अपने धर्म यानि पूर्वजो की लीलाओ को गाकर व रटकर एक दूसरे से सुनते और सुनाते रहे। उनकी ये बातें काव्यों व दोहो में हुआ करते थे। अब यही कारण है उनकी बातो में काव्य व श्रृंगार की प्रधानता रही है। लेकिन उस परिस्थिति में उनके पास अन्य कोई साधन भी नहीं था क्योकि उस समय कागज व कलम नहीं हुआ करते थे। इसलिए वे अपनी बातो को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए उन्हें याद कर लिया करते थे या उन्हें पत्थरो व शिलाओं पर लिख दिया करते थे।
पुराणों में सनातन धर्म की शुरुआत सृष्टि की उत्पत्ति से ही मानी जाती है:
इस प्रकार देखा जाये तो वेद पुराणों में वर्णित सृष्टि के आरम्भ से लेकर भगवान श्री कृष्ण के गमन तक की घटना निश्चित तौर पर यह साबित करने में सक्षम है कि सनातन धर्म की प्राचीनता कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि धरती पर बसने वाले समस्त मानव व जीव के आगमन एवं उसके विकास का एक सच्चा इतिहास है।
विश्व का सबसे प्राचीन, सहनशील व सभी धर्मो का जनक-सनातन धर्म:
सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन, सहनशील व सभी धर्मो का जनक है। विवेकानंद ने भी अपने युगांतकारी भाषण में इस बात को कहा था। 1893 ई में अमेरिका के शिकांगो शहर में हुए विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेते हुए स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण के आरम्भ में ही इस बात को कहा था। उन्होंने कहा था, "हे अमेरिकावासी बहनों और भाइयों, आपने जिस सौहार्द और स्नेहपूर्णता के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उससे मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया. दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों व मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त कर करता हूँ। मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है ! मुझे गर्व है कि मै एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम लोग सब धर्मो के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।"
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लेखन :
(राजीव सिन्हा दिल्ली के जाने माने लेखक है)