मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लेकिन क्या मृत्यु के बाद भी वो जीवित अवस्था की तरह ही सामाजिक जीवन जीता है, क्या मरने के बाद भी मनुष्य की आत्मा किसी विशेष स्थान पर रहना पसंद करती है। तो ऐसी ही रहस्यमयी बातो को उजागर करती ये जानकारी आपके लिए है।
भूत प्रेत होते हैं और ये बातें आधुनिकता के दौर में भी उतनी ही सच हैं जितनी सभ्यता आरंभ होने से पहले ।
किसी भी जीव की आत्मा अपना भौतिक शरीर त्याग करते ही क्षण भर से भी कम समय में छाया शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, या यूँ कहे आत्मा छाया शरीर के साथ ही भौतिक शरीर से अलग होती हैं तो यह ज्यादा उचित होगा क्योंकि गीता में श्री भगवान कृष्ण ने कहा हैं की यह आत्मा क्षण भर के लिए भी बिना शरीर के नही रहती हैं ।
इस तरह आत्मा शरीर की मृत्यु होते ही उसी शरीर के छाया रूपी शरीर में प्रवेश करके शरीर से बाहर आ जाती हैं, जिसे लौकिक भाषा में मृत्यु कहते हैं, जबकि आत्मा के लिए वह कोई मृत्यु नही हैं वह तो केवल एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती हैं।
Bhoot Kahan Kahan Rahta Hai
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देवी भागवत में भी माँ दुर्गा कहती हैं, ' यह आत्मा किसी काल में ना तो जन्म लेती हैं और ना ही मरती हैं, जन्म और मृत्यु तो केवल इस सांसारिक, नश्वर शरीर की होती हैं ! आत्मा इससे परे हैं । '
आत्मा तो केवल शरीर पर शरीर बदलती रहती हैं । हमारे लिए जो जनम और मृत्यु हैं, आत्मा के लिए वो केवल शरीर बदलना मात्र हैं । इसी क्रम में आत्मा मृत्यु के बाद जिस छाया शरीर में प्रवेश करती हैं, सामान्य भाषा में उस शरीर को भूत, प्रेत, चुड़ैल, पिशाच, जिन्न आदि कहते हैं।
मृत्यु के बाद उस छाया शरीर के कुछ स्वभाव, पसंद, नापसंद, तो अपने भौतिक शरीर की भाँति ही बने रहते हैं। मगर इस सच्चाई से भी इंकार नही किया जा सकता हैं की शरीर बदलने के कारण उसके बहुत से चाल - ढंग, रहन - सहन बदल जाते हैं। जैसे अब वे अंधेरे में रहना, लोगो से दूर रहना पसंद करने लगते हैं।
मैं यहां भूत प्रेतों के पसंदीदा निवास स्थल के विषय में केवल एक जानकारी स्वरूप लिख रही हूँ।
चूँकि इस दुनियां में भांति भांति के लोग हैं । उनके स्वभाव, भेष-भूसा, रहन-सहन, खान-पान और पसंद भी अलग अलग हैं। कुछ लोग जिस चीज से घृणा कर रहें होते हैं तो वही दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वैसी ही चीजो के लिए पागल हो रहें होते हैं। इसका कारण हैं की हर इन्सान की पसंद अलग - अलग हैं।
तो ठीक उसी प्रकार कुछ लोग प्रेत आत्माओं के अस्तित्व को मानते हैं जबकि कुछ लोग नही मानते हैं । ये जानकारी जो मैंने यहां लिखी हैं वे उन लोगो के लिए हैं जो प्रेत आत्माओं के अस्तित्व को स्वीकारते हैं ।
जो भूत प्रेत को नही मानते हैं या जो केवल इसे बकवास मानते हैं उन्हे मैं यही सलाह देती हूँ की वे सनातन धर्म का गहन अध्ययन करेँ ! तब किसी निर्णय पर पहुँचे ।
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खैर, जैसा मैने पहले बताया की कोई भी जीव मृत्यु के साथ ही भौतिक शरीर को त्याग कर अभौतिक शरीर धारण कर लेता हैं, सनातन धर्म में उस शरीर को छाया शरीर कहते हैं। आत्मा का एक शरीर से दूसरे में प्रवेश करने का यह समय क्षण भर से भी कम समय में होता हैं ।
अब जब तक उस आत्मा का दूसरा जन्म नही हो जाता, तब तक वे प्रेत आत्माएँ या तो ईश्वरीय नियन्त्रण में रहते हैं या फिर इसी संसार में भटकते रहते हैं । इस प्रकार की प्रक्रियाओ से उन सभी जीवो को गुजरना पड़ता हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हुई होती हैं ।
लेकिन जो जीव निर्धारित समय पर भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं उन्हें भी अल्प समय के लिए ही सही मगर छाया शरीर में रहना ही होता हैं । फिर चाहें वे कितने भी बड़े पुण्यात्मा ही क्यों ना हो !
पुनः जो जीव ईश्वर के प्रिय होते हैं और वे सभी अच्छे बुरे कर्म फल को भोग चुके होते हैं वे भी अल्प समय के लिए प्रेत योनि में जरूर रहते हैं । इस बात का प्रमाण महाभारत की कई घटनाओं में भी मिलता हैं ।
जब कर्ण, अर्जुन के द्वारा युद्धभूमि में मारा जाता हैं और फिर जब अर्जुन को यह मालूम होता हैं की कर्ण उनका ज्येष्ठ भ्राता थे तब वे कर्ण से मिलने के लिए बेचैन हो जाते हैं और फिर अर्जुन को कर्ण का साक्षात दर्शन होता हैं ।
ध्यान देने वाली बात यह हैं की कर्ण का वह छाया शरीर था, जिसमें वह अर्जुन के सामने प्रकट होकर उससे वार्तालाप कर पाया । क्योंकि शुद्ध आत्मा का कोई रूप या स्वरूप नही होता हैं, आत्मा निराकार हैं, आत्मा की कोई योनि भी नही होती हैं ।
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दूसरी ओर जब कोई ईश्वर का प्रिय होता हैं और वो जीव अपने सभी अच्छे बुरे कर्मो को भोग चुका होता हैं तब वह इस बोझिल सांसारिक आवा-गमन से मुक्त होकर ईश्वर द्वारा निर्धारित कार्य हेतु उन्हीं के लोक में निवास करनें लगता हैं ।
मैं यहां बात कर रही हूँ केवल उन आत्माओं की जो किसी कारणवश एक निर्धारित समय तक के लिए अपने छाया शरीर यानि प्रेत योनि में रह कर इस धरती पर ही भटकने के लिए मजबूर हैं। उन प्रेत आत्माओं का स्वभाव विचार, ज्ञान विज्ञान काफी हद तक अपने भौतिक शरीर से ही मिलती जुलती हैं ।
जिस प्रकार जीवित अवस्था में कोई जीव किसी विशेष स्थान पर रहना पसंद करता हैं ठीक वैसे ही मृत्यु उपरांत भी छाया शरीर भी किसी विशेष स्थान पर रहना पसंद करते हैं ।
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उन्हें भी किसी का साथ पसंद होता हैं । वे भी कई कार्यो को करके आनन्द प्राप्त करते हैं । विशेषकर उन कार्यो को जिनको वे जीवित अवस्था में करनें में आनन्द और शांति महसूस करते थे, वैसे हर कार्यो को वे वहाँ भी करना पसंद करते हैं, यदि वहाँ वे संभव हुए तो । वे भी वहा रोते हैं, हंसते हैं, तड़पते हैं ।
मगर सामान्य मानव को वे दिखाई नही देते हैं । हाँ, ये अलग बातें हैं कुछ जीव - जंतु उन प्रेत आत्माओं देख सकते हैं या महसूस कर सकते हैं, लेकिन वे भी कभी कभी ही ! हमेशा वे भी ना तो देख सकते हैं और ना ही उनकी उपस्थिति को महसूस ही कर सकते हैं । खैर, मैं यहां केवल उनके निवास स्थान के विषय में ही बाते कर रही हूँ ।
भूत प्रेत कहां पर रहते हैं - प्रेत आत्मा कहां रहती है - bhoot pret kahan rehte hain
:: प्रेत आत्माएँ जिसके विषय में हमने बहुत कुछ सुना हैं और शायद आगे भी सुनते रहेंगे ! क्या उन प्रेत आत्माओं का कोई निवास स्थान होता हैं, क्या वे भी कोई विशेष स्थान पर ही रहना पसंद करते हैं ?
वैसे तो प्रेत आत्माओ का कोई विशेष निवास स्थान नही होता हैं और वे कही भी आ जा सकते हैं । परंतु कुछ स्थान इन्हें अधिक प्रिय होते हैं ।
घर में भूत होने के लक्षण - Ghar Me Bhoot Hone Ke Lakshan
प्रेत आत्माएँ अक्सर उन स्थानो पर रहना पसंद करते हैं जहाँ का वातावरण शांत, निर्जन होता हैं। जहॉ लोगो का आना जाना या तो बहुत कम होता हैं या फिर केवल निश्चित समय के लिए थोड़े बहुत लोगो का आना जाना होता हैं ।
प्रेत आत्माएँ उन स्थानो पर भी रहना पसंद करते हैं जो स्थान सदैव अंधकार में डूबे होते हैं और जहॉ प्रायः सन्नाटा छाया रहता हैं। इसलिए हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही शाम के समय घर के हर भाग को रौशन करने का प्रचलन हैं । जब बिजली नही थी तब भी दीपक जला कर घर के हर भाग में दीपक दिखाने की परंपरा सदियो से चली आ रही हैं, जिसको ' सांझ देना ' भी कहा गया हैं ।
घर में भूत होने के लक्षण - Ghar Me Bhoot Hone Ke Sanket
कुछ जानकारों का कहना हैं की प्रेत आत्माएँ उन स्थानों पर भी रहना पसंद करते हैं जहॉ हमेशा लड़ाई - झगड़ा, कलह, मन - मुटाव का माहौल बना रहता हैं । क्योंकि इससे वहा के वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती रहती हैं जो विचरती हुई प्रेत आत्माओं को चुंबक की भाँति अपनी ओर आकर्षित करती हैं और फिर वे वहा आंशिक या स्थायी रूप से वास करने लगते हैं ।
इन स्थानों के अतिरिक्त प्रेत आत्माएँ जंगल, झाड़ी, वीरान घर, महल, खँडहर , नदी किनारे के शांत स्थल, श्मशान, कब्रिस्तान, पेड़ - पौधे, घनी वृक्षों पर भी रहना अधिक पसंद करते हैं।
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प्रायः हमलोग भूत प्रेतों के पेड़ो पर रहने की बात सुनते आएँ हैं । जानकारों के अनुसार पेड़ पौधे इनके प्रिय निवास स्थान होते हैं । प्रेत आत्माएँ विशेषकर उन वृक्षों पर रहना अधिक पसंद करते हैं जो घने होते हैं या जो ऊंचे होते हैं या जो अधिक सुनसान स्थल पर होते हैं।
इसके अलावे श्मशान, कब्रिस्तान भूत प्रेतों, जिन्नों का प्रमुख निवास स्थान माना गया हैं । विशेषकर उन श्मशान या कब्रिस्तान पर रहना वे अधिक पसंद करते हैं जहॉ इनके भौतिक शरीर का अंत हुआ होता हैं । क्योकि वहा से उनकी यादें जुड़ी होती हैं, वहा से उन्हें लगाव होता हैं। इस कारण उन्हें वहा एक अजीब सी शांति मिलती हैं और शक्ति भी ।
इसी कारण वे उन स्थानों पर विचरना अधिक पसंद करते हैं । इसके पीछे और भी कारण हैं । माना जाता हैं की वे अपने शरीर से जुड़ी हुई अनेको यादों को ताजा करने के लिए भी वहा विचरते हैं ।
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अब अगर कब्रिस्तान की बात करें तो चाहें वे कब्रिस्तान मुस्लिमों वाली हो या ईसाइयों वाली दोनो ही श्मशान की तुलना में बहुत ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि, वहा उन प्रेत योनियों में रहने वाली आत्माओं के पूरे के पूरे मृतक शरीर होते हैं और बहुत सालो तक वे नष्ट भी नही होते हैं ।
किसी कारणवश अगर उन प्रेत आत्माओं का जन्म नही हुआ होता हैं तो वे अपने शरीर के बचे हुए अवशेषों के पास आना जाना व रहना अधिक पसंद करते हैं । इससे उन प्रेत आत्माओं की शक्तियों में वृद्धि होती रहती हैं ।
यही कारण हैं की हमारे सनातन धर्म में मानव की मृत्यु के बाद उनके शरीर को अग्नि में दाह संस्कार करके स्थायी रूप से नष्ट कर दिया जाता हैं ताकि छाया शरीरधारी आत्माओ का अपने शरीर से मोह नष्ट हो जाएँ। जिससे उनके मुक्त होने की संभावना अधिक होती हैं ।
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अब प्रेत आत्माओं (Pret Aatmao) के अन्य पसंदीदा स्थान पर विचार करते हैं । माना जाता हैं जहॉ मानव की मृत्यु हुई होती हैं वहा भी वे (Aatmayen) रहना पसंद अधिक करते हैं क्योंकि वहा से उनकी स्मृति, उनके मोह जुड़े होते हैं । जिस कारण उस स्थान से उनका (Aatmao Ka) लगाव सा हो जाता हैं । इसके साथ ही वहा रहने से उन्हें शक्ति भी प्राप्त होती रहती हैं ।
जिस स्थान पर किसी ने आत्महत्या कर ली हो अथवा उसकी हत्या कर दी गई हो या फिर किसी दुर्घटना का वे शिकार हो गए हो, उस स्थान पर भी वे मृत्यु उपरांत प्रेत आत्माएँ (Bhoot Pret) रहना अधिक पसंद करते हैं या फिर वे स्थायी रूप से ना सही मगर वे वहा आना जाना अधिक पसंद करते हैं । क्योकि उस जगह से ना केवल उनकी स्मृति जुड़ी होती हैं बल्कि उन्हें वहा से शक्ति भी प्राप्त होती रहती हैं ।
यही कारण हैं की कई सड़क या सड़क के मोड़ अभिशप्त के रूप में जाने जाते हैं । हालाकि यह स्थिति स्थायी नही हैं । छाया शरीर के मुक्ति के साथ वे फिर से सामान्य हो जाया करते हैं । लेकिन फिर भी वे कुछ समय के लिए शापित जरूर हो जाते हैं ।
कई बार यही स्थिति नये या पुराने घरो, बिल्डिंग्स, बाग - बगीचों, अस्पतालों, फ्लेट्स, स्कूलो, कालेजों के साथ भी हो जाता हैं और किसी घटना के बाद वे अभिशप्त हो जाते हैं । लेकिन मैं जैसा जानती हूँ की ये स्थिति भी स्थायी नही हैं । दूसरी ओर उचित उपाय से इसका अस्थाई या स्थायी समाधन भी हो जाता हैं । जरुरत हैं केवल समस्या को समझने की और उसपर विश्वास करने की । लेकिन इसके समाधन के चक्कर में किसी अंधविश्वास में भूल से भी नही पड़ना चाहिए । इसके लिए केवल योग्य पात्र से ही सहयोग लेना चाहिए और वो भी सभी के आपसी राय विचार के बाद ही ।
तो अब यदि बात करें सुनसान खँडहर, सुनसान स्थल, वर्षो से सुनसान परे मकान, तो प्रेत आत्माएँ ऐसे सभी स्थानों पर रहना अधिक पसंद करते हैं, क्योकि वैसे स्थानों पर उन्हें वहा अजीब सी शांति मिलती हैं। वे उन स्थानों पर रहकर उन भूली बिसरी स्मृतियों में खो जाते, जब वे जीवित हुआ करते थे ।
माना जाता हैं वे वहा पुरानी स्मृतियों को याद करके बहुत दुःखी भी होते हैं । मगर फिर भी वहा उन्हें शांति मिलती हैं ।
कुछ प्रेतात्माएं नदी किनारे पर रहना पसंद करते हैं । माना जाता हैं इनमें अधिकांश अच्छी प्रेत आत्माएँ ही होते हैं, परंतु इनमें दुष्ट प्रेत आत्माएँ भी हो सकते हैं ।
इसके अलावे बहुत सारी आत्माएँ जंगल, झाड़ी, बगीचा, सुनसान सड़क, हाईवे, पहाड़, पहाड़ी, पठार, रेगिस्तान, अंतरिक्ष जैसे स्थलों पर भी रहना पसंद करते हैं । ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योकि वहा उन्हें एक अजीब सी शांति और सुकून मिलती हैं ।
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