उत्तराखण्ड की लोककथा - लाल बुरांश (Lal Buransh)

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प्रतिक चित्र

'लाल बुरांश'उत्तराखण्ड की कई लोककथाओ में से एक हैं। यह कहानी बहुत मार्मिक हैं। हमलोग बहुत सारी सच्ची और कल्पित किस्से - कहानियाँ पढ़ा करते हैं। मगर उनमें से कुछ ही हमे पसंद आती हैं और उसपर से भी कुछ ही ऐसी किस्से-कहानियाँ होती हैं, जो हमारे मानस पटल पर स्थायी रूप से बस पाती हैं।


ऐसा इसलिए होता हैं, क्योंकि उन किस्से - कहानियों में कुछ ऐसी बातें होती हैं जो हमें अनायास ही अपनी ओर खींच लेती हैं। हमारी उन भूली बिसरी स्मृतियों को वे ताजा कर देती हैं, जिनको याद करने पर दुःख तो होता हैं मगर उसके बावजूद हमें शांति मिलती हैं।


इसका कारण यह हैं की उस कहानी को सुनकर या पढ़कर हम यादों के झरोखे से होते हुए उस कल्पना लोक में या उस बीते हुए पल में पहुँच जाते हैं जो हमारे लिए केवल एक सपना के समान हैं।


यही कारण हैं की हम उन कहानियों को बार बार पढ़ते हैं। हम उन कहानियों के प्रति एक लगाव सा महसूस करने लगते हैं । ऐसा इसलिए होता हैं, क्योंकि हम भी उन कहानियों में अपने आपको को तलाश करने लग जाते हैं । हम उनके किसी पात्र में ही अपने चेहरे को रखकर देखने लगते हैं और जब भी वो चेहरा हमे किसी भी सच्ची या कल्पित किस्से कहानियों में दिख जाता हैं तब वह कहानी हमारे हृदय के बिल्कुल करीब बसने लगती हैं । और इस प्रकार वैसी कोई भी कहानियाँ चाहे वो कल्पित हो या सच्ची हो, हमे पसंद आने लगती हैं ।


ऐसी ही एक लोककथा हैं "लाल बुरांश" वास्तव में, लोक कथाओं का एक अपना ही अलग महत्व हैं । इनकी एक अलग पहचान हैं क्योंकि इन कथाओं में आज की तरह बनावटीपन नही होता हैं । ये सीधे तौर पर हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारी भाषा, हमारी मिट्टी और हमारे पूर्वजो के जीवनशैली से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं । वास्तव में, प्रत्येक लोक कथा वहां की सभ्यता और संस्कृति की झलक को भी दर्शाती है।


लोक कथाएँ चाहे भारत के किसी भी राज्य की क्यों न हो, उन सभी में इन गुणों की झलक तो देखने को मिलती ही हैं । वैसे दुःख की बात यह हैं की धीरे धीरे लोक कथाओं को पसंद करने वाले लोगो की संख्या में बहुत गिरावट आती जा रही हैं।


वर्तमान में भले ही इनको पसंद करने वाले लोग कम गए हो लेकिन इतना तो तय है कि लोककथाओं की अपनी ही दुनिया है, अपनी ही संस्कृति है। तो ऐसी ही एक लोककथा है, जिसका नाम हैं-"लाल बुरांश"

Lal Buransh

लेकिन इस लोककथा से पहले बुरांश का संक्षिप्त परिचय लिखना आवश्यक हैं। पता नही आपने इसका नाम पहले सुना भी हैं या नही ! तो इसलिए पहले इसका संक्षिप्त परिचय आवश्यक है।


Rhododendron (Buransh or Burans) - Medicinal plants in India


बुरांश के वृक्ष भारत के पर्वतीय राज्यों Uttarakhand, Himachal Pradesh में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्षों में से एक हैं। प्राकृतिक रूप से बुरांश उच्च पर्वतीय शिखरों में ही पाये जाने वाला वृक्ष है। इसके पत्ते बहुत चमकीले और चिकने होते हैं। इसके फूल मखमली और लाल रंग के होते है। इनके फूल गुच्छों में होते हैं । बुरांश के फूल (Buransh Flower) देखने में बहुत सुदंर होते हैं । इसे बुरांस या बुरुंश के नाम से भी जाना जाता हैं ! अंग्रेजी में इसे रोडोडेंड्रॉन (Rhododendron) कहते हैं ।


Swasthya Ke Liye Bhi Labhkari-


बुरांश के फूल केवल देखने में ही सुंदर नही होते हैं बल्कि ये बेहतरीन औषधीय गुणों से भी भरे होते हैं ! यह स्वास्थ्य (health) के लिए भी बहुत लाभकारी है। इसके फूल से कई आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक दवाइयाँ (Medicine) भी बनाई जाती हैं! बुरांश के जूस (Flower juice) कई बीमारियों को दूर करने में रामबाण के समान हैं!यह श्वास के विकारों को तत्काल दूर करता हैं!


Bharat Ke Aushadhiye Vrikshya-Herbal Trees in India


पहले यह केवल पहाड़ी क्षेत्रो में ही लोकप्रिय था लेकिन अब समूचे भारत में इसकी माँग बढ़ गई हैं! इस कारण यह बहुत महंगा बिकता हैं! बुरांश के फूलों को केवल भारत में ही नही बल्कि समूचे यूरोपीय देशों में भी खूब पसंद किया जाता हैं।


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बुरांश के वृक्ष को उत्तराखण्ड में राजकीय वृक्ष घोषित किया गया हैं! जबकि नेपाल में बुरांश के लाल फूल को राष्ट्रीय पुष्प के रूप में जाना जाता हैं! Nepal में बुरांस को गुराँस Gurans कहा जाता है।

बुरांश के फूल सालभर में केवल मार्च और अप्रैल महीने में ही खिलते हैं। अन्य मौसम Season में बुरांश के वृक्ष पुष्प के अभाव में वीरान पड़े होते हैं!


तो, उत्तराखण्ड की यह लोककथा इसी फूल के खिलने पर आधारित हैं। अब चूँकि लोककथाएं सुनी-सुनाई होती हैं और हर इन्सान उसको अपने ढंग से कही सुनाता हैं या फिर कही उसे लिखता हैं। तो मैंने भी इस कहानी को अपने ढ़ंग से लिखने की कोशिश की हैं साथ ही साथ मैने ये भी कोशिश की हैं की इस लोक कथा की वास्तविक पहचान बनी रहें!


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लाल बुरांश

(उत्तराखण्ड की एक प्रसिद्ध लोककथा)


बहुत समय पहलें की बात है । एक गाँव में एक किसान परिवार रहा करता था। उनकी एक सुंदर सी बेटी थी । बड़ी होने पर उन्होंने अपनी बेटी की शादी कर दी। विवाह के बाद पर्व-त्यौहार या कोई उत्सव के मौके पर किसान अपनी बेटी का बेसब्री से इन्तजार करने लगे । पर्व - त्योहार आते रहे और जाते रहे मगर उनकी बेटी नहीं आयी। शुरू में तो उन्होंने सोचा कि नयी शादी है, ससुराल के कुछ काम में उलझ गई होगी।


समय बीतता चला गया । मगर उनकी बेटी उनसे मिलने नहीं आयी । अब लड़की के माता पिता बहुत चिंतित और उदास रहने लग गएँ । अपनी इकलौती बेटी को देखे बिना उनका हृदय कई आशंकाओं से भरा रहता ।


उधर बेटी भी ससुराल में दुखी रहा करती। उसकी सास निष्ठुर थी। उससे दिन-रात काम लिया जाता और ढंग से उसे आराम भी नहीं करने दिया जाता। वह दिन भर घर और खेत के काम करती रहती। फिर भी उसे अपने मायके नही जाने दिया जाता। वह जब भी अपनी सास से मायके जाने की बात करती, उसकी सास कोई न कोई बहाना करके उसे मना कर दिया करती।


उस लड़की के संपर्क में कोई ऐसा भी नहीं था जिससे वह अपने माता-पिता का हाल चाल मालूम कर सके या फिर उसका संदेस उसके माता पिता तक पहुँचा सके। अकेलेपन में वह जानवरों की सेवा करने के दौरान उनसे ही अपने मन की बात कहती रहती। जब वह मवेशियों के लिए चारा लाने या लकड़ी लाने के लिए जंगल जाती तब वह जंगल में मौजूद ढ़ेर सारे वृक्षों से बाते किया करती! उन्हें अपने मन की पीड़ा सुनाती और खूब रोती थी।


उधर माता-पिता भी अपनी इकलौती बेटी की चिंता में बीमार रहने लग गएँ। एक दिन बेटी को रात में माँ का सपना आया । सपने में उसने देखा उसकी माँ बहुत बीमार हैं। उसकी माँ उसे बेचैन होकर याद कर रही । अगले ही दिन उसने ये बातें अपनी सास को बतलाई और मायके जाने का अनुरोध किया । इस बार सास ने उसकी बात मान ली और उसे मायके जाने के लिए कह दिया। अगले दिन वह व्याकुल होकर अपने घर-गाँव के रास्ते पर तेजी से चल पड़ी । उसका मन अब अपने माता-पिता से मिलने के लिए बेचैन हो रहा था। शादी के बाद वह पहली बार अपने मायके जा रही थी।


आज वह अपने माता पिता से मिलेंगी ! उन्हें अपने मन की सारी पीड़ा बतलायेगी। वह उनके लिए कितना रोयी हैं, यह भी उन्हें बताएगी। सास उसे कितना दुःख देती हैं, यह भी वह अपने माता - पिता को बताएगी। आज बहुत दिन बाद वह अपने माता पिता के घर पर कदम रखेंगी ! आज उसे अपने बचपन की वे सभी यादें ताजा हो जाएँगी जिसको वह हमेशा याद किया करती हैं। आज वह उस घर आँगन में जा रही हैं जहॉ उसका बचपन बीता था।


वह लड़की आज बहुत खुश थी। उस खुशी के कारण उसे सामने भी कुछ नही दिख रहा था! आज उसकी चिरप्रतीक्षित ईच्छा जो पूरी होने वाली थी। वह बस अपने मायके की ओर ही तेज कदमों से बढ़ रही थी । गाँव दूर था और संध्या भी अब होने ही वाली थी। मगर वह लगातार तेज कदमों से अपने मायके की ओर ही बढ़ रही थी…..बस अपने मायके की ओर ही भागे जा रही थी….!



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आखिरकार उसके गाँव पहुँचते पहुँचते संध्या का वेला हो ही गया। लेकिन फिर भी संध्या वेला तक वह लड़की घर पहुँच गई थी। उसने घर के आँगन में कदम रखा। दूर आँगन से ही उसकी दृष्टि कमरे के दरवाजे पर चली गई। लेकिन ये क्या........!!!!! उसके माता-पिता तो मुख्य दरवाजे की ओर ही टकटकी लगाये बैठे हैं। पलंग पर लेटी बीमार माँ की आंखें तो जैसे मुख्य द्वार पर ही लगी हैं। उसके सिरहाने बैठे पिता भी जैसे उसी की राह तक रहें हैं।


दोनों बहुत कमजोर और बहुत निराश दिखाई पड़ रहे हैं। अपने माता पिता की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर वह बेटी अचानक से बहुत घबड़ा गई। उसने तो सोचा था कि वह अपने माता पिता से मिलकर अपने ससुराल की दुःख उन्हें बतलायेगी! मगर यहां का दृश्य तो कुछ और ही हैं। वह बेटी वहाँ कि ह्रदयविदारक दृश्य को देखकर सबकुछ भूल गई। वह बेटी अपने माता-पिता का हाल चाल जानने के उद्देश्य से सवालों की झड़ी लगा दी।


उस समय उसके माता पिता के चेहरे ऐसे लग रहें थे। मानो, वे अपनी लाडली इकलौती बेटी कि ऐसी हालत देखकर अवाक हो गएँ हो। उनदोनो के चेहरे से यह झलक रहा था जैसे उन्हें अपनी बेटी की हालत देखकर समझ आ गयी हो कि उसे ससुराल में किन हालातों में रखा जाता है। वे दोनों अपनी इकलौती बेटी की ऐसी स्थिति देखकर स्तब्ध थे। उनकी आँखें खुली थी मगर मुँह से कोई शब्द नही निकल रहें थे!


इतने समय बाद एक बेटी का अपने माँ-बाप से मिलन भी तब हुँआ जब माँ-बाप की ऐसी हालात हो गई। अपने माता पिता को ऐसी हालात में देखकर उस लड़की के आंसू भी निरंतर बहते जा रहे थे। उसने माँ को गले लगाया । मगर वह निशब्द थी। उस बेटी ने फिर अपने पिता को भी गले से लगाया । लेकिन ये क्या ? वे दोनों कुछ बोल क्यों नही रहें हैं!


आखिर शादी के बाद मैं पहली बार घर आई हूँ! मैं इनकी इकलौती बेटी हूँ! मुझे कितना चाहते थे मेरे माता-पिता! लेकिन आज….आज मेरे माता - पिता को ये क्या हो गया! ये कुछ बोल क्यों नही रहें हैं? बेटी को अब संदेह हो गया था। वह सोचने लगी ! उसकी आँखों से बहते आँसुओं को देखकर तो उसके माता-पिता को उसे अपने गले से लगा लेना चाहिए था मगर ये क्या? वे तो निशब्द बैठे हैं! बेटी ने उन्हें हिलाया, प्रतिक्रिया न पाकर वह बहुत घबरा गई! घबराकर वह अभागी बेटी अब अपने माता-पिता को झकझोरने लगी।


लेकिन होनी तो कुछ और ही सोचे बैठी थी। उस अभागी बेटी के प्रारब्ध में माता-पिता के पास आकर भी उनसे मिलना नही लिखा था, उनसे बातें करना नही लिखा था, उनसे अपने मन की पीड़ा बतलाना नही लिखा था।


-- अपनी इकलौती, लाडली बेटी की राह तकते तकते उसके माता-पिता की पहलें ही मृत्यु हो चुकी थी.........!!


..........बताते हैं कि कुछ समय बाद उसी वीरान घर में बुरांश का एक वृक्ष उग आया था। उस वृक्ष पर बुरांश के दो फूल खिले थे। अब बेटी हर वर्ष बुरांश के खिलने के मौसम में अपने मायके आने लगी थी। बेटी बुरांश से भेंट करती और बुरांश से ही भेंट करके वह इतना अपनापन महसूस करती मानो, वह अपने मृत माता-पिता से ही मिल रही हो......!!



......... कहते हैं तभी से बुरांश खिलने के मौसम में बेटियों के अपने मायके आकर माता-पिता से भेंट करने की परंपरा पहाड़ों में आज भी चली आ रही हैं..........!!!!

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Authoress

Ruby Sinha

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